आरजेडी में बदलाव की बयार: युवा चेहरों को तरजीह, बुजुर्गों को सियासी मंच पर बरकरार रखने की रणनीति

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पटना: 28 साल की राष्ट्रीय जनता दल (राजद) अब बदलाव की दिशा में कदम बढ़ा रही है। पार्टी के अंदर संगठनात्मक स्तर पर धीरे-धीरे बड़ा फेरबदल हो रहा है, जिसमें युवा चेहरों को आगे लाया जा रहा है। यह बदलाव न केवल प्रदेश स्तर पर बल्कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी के गठन में भी स्पष्ट दिखाई दे रहा है। तेजस्वी यादव की कोर टीम के युवा नेताओं को अब निर्णायक भूमिका दी जा रही है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पार्टी अब एक संतुलित मॉडल पर काम कर रही है, जिसमें अनुभवी समाजवादी नेताओं के साथ-साथ सोशल मीडिया और जमीनी सियासत में दक्ष युवाओं को भी स्थान मिल रहा है। प्रस्तावित राष्ट्रीय कार्यकारिणी में तेजस्वी यादव के करीबी और रणनीतिक युवा नेता जैसे आलोक मेहता, कामरान, संजय यादव, रणविजय साहू, सर्वजीत कुमार और शिवचंद्र राम को प्रमुख जिम्मेदारियां मिल सकती हैं।

हालांकि, लालू प्रसाद यादव बुजुर्ग समाजवादी नेताओं को दरकिनार करने के पक्ष में नहीं हैं। पार्टी मंचों पर शिवानंद तिवारी, जगदानंद सिंह, उदय नारायण चौधरी, अब्दुल बारी सिद्दीकी और रामचंद्र पूर्वे जैसे दिग्गज नेताओं की मौजूदगी अब भी दिखेगी। लालू की रणनीति स्पष्ट है—वह चाहते हैं कि तेजस्वी को बुजुर्ग नेताओं का सियासी आशीर्वाद मिले और पार्टी की ‘A to Z’ छवि भी बरकरार रहे।

तेजस्वी यादव की टीम सोशल मीडिया और जातीय समीकरणों के लिहाज से काफी सशक्त मानी जा रही है। पार्टी के ‘थिंक टैंक’ में अब युवा ज्यादा सक्रिय हो गए हैं। महागठबंधन में सीट बंटवारे जैसे अहम मसलों में भी इन्हीं चेहरों की भूमिका अहम मानी जा रही है।

पार्टी के संगठन में इस बार अति पिछड़ा वर्ग को भी भरपूर प्रतिनिधित्व देने की तैयारी है। पार्टी मानती है कि पिछली बार अति पिछड़ों का पर्याप्त समर्थन न मिलने से चुनाव में नुकसान हुआ। इसी को ध्यान में रखते हुए अब अति पिछड़ों को संगठनात्मक पदों में प्राथमिकता देने की योजना है।

हालांकि पार्टी नेतृत्व की जिम्मेदारी अब भी बुजुर्ग नेताओं के हाथ में ही रहेगी। प्रदेश अध्यक्ष मंगनीलाल मंडल और राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में लालू प्रसाद यादव खुद जिम्मेदारी संभाले रहेंगे। जानकारों के मुताबिक, पूरी तरह युवा नेतृत्व को सौंपना फिलहाल राजद के लिए सियासी जोखिम बन सकता है।

राजद का यह रूपांतरण अगले विधानसभा चुनाव की तैयारी के तौर पर देखा जा रहा है। पार्टी एक तरफ अपनी परंपरागत समाजवादी पहचान को कायम रखने की कोशिश में है, तो दूसरी ओर युवा नेतृत्व को आगे लाकर भविष्य की सियासत की नींव भी मजबूत करना चाह रही है।

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