PATNA : बिहार विधानसभा चुनाव में अब कुछ ही महीने शेष हैं और एनडीए के घटक दलों के बीच सीट बंटवारे की बातचीत अंतिम चरण में पहुंच चुकी है। BJP और JDU के बीच लगभग सहमति बन चुकी है कि दोनों दल 100 से 105 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे, लेकिन लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) [एलजेपी (आरवी)] द्वारा की गई 40 सीटों की मांग ने समीकरण को पेचीदा बना दिया है।
लोकसभा चुनाव 2024 में एलजेपी (आरवी) ने उल्लेखनीय प्रदर्शन किया था। पार्टी ने सभी 5 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की और 6% से अधिक वोट शेयर के साथ 30 विधानसभा क्षेत्रों में से 29 में बढ़त बनाई। इसी प्रदर्शन के आधार पर चिराग पासवान 40 विधानसभा सीटों की मांग कर रहे हैं। हालांकि राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि विधानसभा और लोकसभा चुनाव की रणनीतियों में ज़मीन-आसमान का फर्क होता है।
2020 के विधानसभा चुनाव में एलजेपी (आरवी) ने 135 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन सिर्फ एक सीट (मतिहानी) पर जीत दर्ज कर पाई। हालांकि वोट शेयर 5.66% रहा लेकिन पार्टी ने कई सीटों पर एनडीए, विशेषकर जेडीयू के समीकरण बिगाड़ दिए। ऐसे 27 सीटें थीं जहां एलजेपी के कारण जेडीयू को हार का सामना करना पड़ा। यही कारण है कि एनडीए में उसकी सीट डिमांड को लेकर संदेह बना हुआ है।
वहीं 2020 में भाजपा ने 110 और जेडीयू ने 115 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिसमें भाजपा ने 74 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरते हुए जेडीयू को पीछे छोड़ दिया था, जिसे मात्र 43 सीटों पर संतोष करना पड़ा। इसके बावजूद इस बार जेडीयू 100 से कम सीटों पर चुनाव लड़ने को तैयार नहीं है क्योंकि एनडीए नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव मैदान में उतर रहा है।
इस पृष्ठभूमि में भाजपा और जेडीयू दोनों यह स्पष्ट संकेत दे चुके हैं कि छोटे दलों को जरूरत से अधिक सीटें नहीं दी जाएंगी, जिससे गठबंधन में संतुलन बना रहे। एलजेपी (आरवी) के पास वर्तमान में 5 लोकसभा सांसद हैं, जो उसके लिए प्रमुख आधार है लेकिन विधानसभा चुनावों में संगठनात्मक ताकत, ग्राउंड लेवल नेटवर्क और कार्यकर्ताओं की सक्रियता को भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। एनडीए के रणनीतिकार मानते हैं कि एलजेपी (आरवी) को 20 से 25 सीटों के भीतर एडजस्ट किया जाना ही व्यवहारिक विकल्प होगा।