रांची। झारखंड पुलिस मुख्यालय में सुरक्षा उपकरणों की खरीद प्रक्रिया में गहरी अनियमितताओं और भ्रष्टाचार की परतें खुल रही हैं। खासतौर पर एक्स-रे बैगेज स्कैनर मशीन की खरीद में सामने आया है कि जिस मशीन को हिमाचल प्रदेश पुलिस ने मात्र 10 लाख और उत्तर प्रदेश पुलिस ने 12 लाख रुपये में खरीदा, उसी मशीन को झारखंड पुलिस ने 24 लाख रुपये में खरीदा। यह कीमत बाजार दर से ढाई गुना अधिक है।
विसिल ब्लोअर एक्ट के तहत शिकायत
इस पूरे मामले को लेकर एक आईजी रैंक के अधिकारी ने विसिल ब्लोअर एक्ट के तहत सरकार और वरिष्ठ अधिकारियों से शिकायत की है। शिकायत में कहा गया है कि वर्षों से चल रहे इस घोटाले में तीन कनीय पदाधिकारी ही नहीं, बल्कि सीनियर आईपीएस अधिकारी भी संदेह के घेरे में हैं।
GEM पोर्टल से की गई खरीद, पर नहीं हुई पारदर्शिता
वर्ष 2022 में झारखंड पुलिस मुख्यालय ने GEM पोर्टल पर दो टेंडर जारी किए थे, जिसके ज़रिए कुल 5 एक्स-रे बैगेज मशीनें खरीदी गईं। दोनों टेंडर में एल-1 यानी सबसे कम बोली लगाने वाली कंपनी अरिहंत ट्रेडिंग कंपनी बनी, जिसने प्रति मशीन 24 लाख की दर से आपूर्ति की।
टेंडर में कार्टेल का खुलासा
इस खरीद प्रक्रिया में शामिल तीन कंपनियों – अरिहंत ट्रेडिंग कंपनी (एल-1), लाइफ लाइन सिक्योरिटी एंड सिस्टम (एल-2) और एमआईएम टेक्निशियन (एल-3) – को एक ही दिन (29 सितंबर 2022) को एक ही कंपनी विहांत टेक्नोलॉजी द्वारा ओईएम प्रमाण पत्र जारी किया गया था। प्रमाण पत्र क्रमशः पत्र संख्या 1, 2 और 3 के माध्यम से दिए गए, जो अपने आप में मिलीभगत का स्पष्ट संकेत है।
कंपनियों के मालिक आपस में जुड़े हुए
दस्तावेजों से यह भी सामने आया है कि इन कंपनियों के मालिक – चिराग जैन, जितेंद्र कोचर और ताजुद्दीन अंसारी – अन्य सुरक्षा उपकरण सप्लाई करने वाली कंपनियों के साथ भी जुड़े हैं। उदाहरण के लिए, जेसी माइकल प्राइवेट लिमिटेड नामक कंपनी के निदेशक भी यही लोग हैं। इसका अर्थ है कि निविदा प्रक्रिया में जानबूझकर प्रतिस्पर्धा को खत्म किया गया और एक खास गुट को फायदा पहुँचाया गया।
दस्तावेजों में तथ्यों को छिपाया गया
अरिहंत ट्रेडिंग कंपनी ने अन्य राज्यों को की गई सप्लाई की कीमत को दस्तावेजों में नहीं दर्शाया। अधिकारियों ने भी इस तथ्य को अनदेखा कर टेंडर को मंजूरी दे दी, जिससे यह संदेह और गहरा हो गया है कि क्या उच्च पदस्थ अधिकारी भी इस घोटाले में शामिल हैं।
उठते हैं कई गंभीर सवाल
इस पूरे मामले से कई गंभीर सवाल खड़े होते हैं:
- क्या पुलिस मुख्यालय के अधिकारी बिना उचित जांच-पड़ताल के टेंडर पास करते हैं?
- क्या कंपनियों को मनमाने दाम वसूलने की खुली छूट दी जा रही है?
- क्या कनीय अधिकारी इतने प्रभावशाली हो गए हैं कि वरिष्ठ अफसर केवल हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर हो जाते हैं?
निष्कर्ष
झारखंड पुलिस की यह उपकरण खरीद प्रक्रिया पारदर्शिता और जवाबदेही की गंभीर परीक्षा बन गई है। अगर आरोप सही हैं तो यह केवल आर्थिक अपराध नहीं, बल्कि सार्वजनिक संसाधनों के दुरुपयोग का गंभीर मामला है, जिसमें शीघ्र कार्रवाई की आवश्यकता है। राज्य सरकार और निगरानी एजेंसियों को इस पर सख्त कदम उठाने होंगे ताकि भविष्य में इस तरह की गड़बड़ियां दोहराई न जा सकें।