‘Indians Not Allowed’: मसूरी की माल रोड पर ब्रिटिश दौर में लगा था शर्मनाक बोर्ड

Share

DEHRADUN : आज जहां मसूरी की माल रोड देश-विदेश के पर्यटकों से गुलजार रहती है, वहीं इतिहास के पन्नों में यह जगह कभी भारतीयों के लिए वर्जित क्षेत्र मानी जाती थी। ब्रिटिश शासनकाल में मसूरी की सबसे अहम और खूबसूरत लोकेशन माने जाने वाली माल रोड पर बाकायदा बोर्ड लगाकर लिखा गया था Indians and Dogs Not Allowed यह सिर्फ एक चेतावनी नहीं बल्कि ब्रिटिश राज के दौरान भारतीयों के साथ किए जा रहे भेदभाव का एक कड़वा प्रतीक था।

भारतीयों का माल रोड पर मना था जाना

स्थानीय निवासी गुड्डू, जिनके पिता और दादा हाथ रिक्शा चलाते थे, बताते हैं कि उन्होंने अपने बुजुर्गों से सुना है कि एक समय माल रोड पर भारतीयों का जाना मना था। अंग्रेज अफसर और यूरोपीय नागरिक यहां बिना किसी भारतीय हस्तक्षेप के सुकून की ज़िंदगी बिताना चाहते थे, यह प्रतिबंध केवल मसूरी तक सीमित नहीं था बल्कि देश के कई ऐसे स्थानों पर लागू था जो अंग्रेजों के लिए विशेष क्षेत्र माने जाते थे।

चोर गली से करना होता था रास्ता तय

भारतीयों को माल रोड की बजाय उससे नीचे की ओर बनी एक संकरी और असुविधाजनक सड़क जिसे स्थानीय लोगों को चोर गली से गुजरना पड़ता था। यह अलगाव केवल सुविधा का नहीं बल्कि ब्रिटिश हुकूमत की उस सोच का हिस्सा था, जिसमें भारतीयों को दोयम दर्जे का नागरिक माना जाता था।

मोतीलाल नेहरू ने तोड़ा था अंग्रेजों का यह कानून

इतिहास में दर्ज घटनाओं के अनुसार देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी पंडित जब देहरादून में रहा करती थीं, तो उनका परिवार मसूरी जाया करता था। कहा जाता है कि उस दौरान पंडित मोतीलाल नेहरू ने इस नस्लवादी कानून का विरोध करते हुए माल रोड पर सार्वजनिक रूप से चलकर अंग्रेजी हुकूमत की अवहेलना की थी, यह कदम अपने आप में साहसिक और विरोध का प्रतीक बन गया था।

माल रोड का अतीत और वर्तमान

आज मसूरी की माल रोड पर्यटकों के लिए खुली है और यहां देशभर के लोग बेझिझक घूमते हैं लेकिन इसका यह आधुनिक, स्वागतपूर्ण चेहरा एक वक्त पर घोर नस्लभेद और दमन की दास्तान बयां करता है। उस दौर की माल रोड केवल अंग्रेजों के लिए थी और बाकी भारतीयों को यह महसूस कराया जाता था कि वे उस समाज का हिस्सा नहीं हैं।

नस्लभेद का प्रतीक बना माल रोड

ब्रिटिश शासन में लगाया गया यह प्रतिबंध सिर्फ एक कानून नहीं था बल्कि गोरों की उस मानसिकता का खुला प्रदर्शन था, जिसमें भारतीयों को हीन समझा जाता था। यह इतिहास हमें बताता है कि स्वतंत्रता सिर्फ राजनीतिक नहीं, बल्कि सामाजिक और मानसिक बंधनों से भी मुक्ति की लड़ाई थी।

Share this article

Facebook
Twitter X
WhatsApp
Telegram
 
August 2025
M T W T F S S
 123
45678910
11121314151617
18192021222324
25262728293031