PATNA : बिहार की राजनीति इन दिनों चिराग पासवान की दोहरी रणनीति को लेकर गर्म है, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान एक तरफ खुद को एनडीए का समर्पित सिपाही बताते हैं। वहीं दूसरी ओर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनकी सरकार पर तीखे हमले कर रहे हैं, गया की हालिया दुष्कर्म की घटना पर चिराग ने राज्य सरकार और पुलिस को निकम्मा करार दिया जिससे राजनीतिक गलियारों में हलचल मच गई है। जेडीयू ने चिराग के हमले पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए उन्हें मर्यादा में रहने की सलाह दी, पार्टी के मुख्य प्रवक्ता नीरज कुमार ने कहा कि चिराग पासवान का शरीर कहीं है और आत्मा कहीं। साथ ही उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह का भरोसा नीतीश कुमार पर है, ऐसे में चिराग का विचलित होना कोई मायने नहीं रखता।
चिराग पासवान की भूमिका को लेकर जेडीयू बेहद सतर्क है, 2020 के विधानसभा चुनाव में चिराग ने जेडीयू के खिलाफ 134 सीटों पर उम्मीदवार उतारकर उसे भारी नुकसान पहुंचाया था। नतीजतन जेडीयू पहले नंबर की पार्टी से तीसरे नंबर पर आ गई थी यही डर एक बार फिर जेडीयू को सता रहा है। चिराग न केवल नीतीश कुमार की सुशासन वाली छवि पर हमला कर रहे हैं, बल्कि महागठबंधन के नेता तेजस्वी यादव को भी आड़े हाथों ले रहे हैं। विशेष गहन संशोधन (SIR) के मुद्दे पर चिराग ने तेजस्वी और कांग्रेस पर तंज कसते हुए कहा कि हिम्मत है तो चुनाव का बहिष्कार कर के दिखाएं। उन्होंने खुद के 2020 में अकेले चुनाव लड़ने का हवाला देते हुए विपक्षी दलों की कमजोरी पर सवाल खड़े किए।
चिराग पासवान का प्रशांत किशोर की विचारधारा की खुलेआम तारीफ करना भी सियासी हलकों में चर्चा का विषय है। उन्होंने जातिविहीन समाज की प्रशांत किशोर की सोच को अपनी सोच से मिलती-जुलती बताया। इससे यह कयास भी लगने लगे हैं कि भविष्य में जन सुराज पार्टी और चिराग पासवान के बीच किसी नए समीकरण की शुरुआत हो सकती है। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो चिराग की यह दोहरी रणनीति बीजेपी की एक सोची-समझी योजना भी हो सकती है। बीजेपी जो अब भी काफी हद तक नीतीश कुमार पर निर्भर है, वह चिराग को तेजस्वी यादव की लोकप्रियता को बैलेंस करने के लिए फ्रंट पर ला रही हो। चिराग की बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट वाली छवि और दलित-पासवान वोट बैंक पर पकड़ उन्हें एक संभावित युवा चेहरे के रूप में पेश करती है।
हाल के सर्वे के मुताबिक चिराग की लोकप्रियता 10.6% रही, जो नीतीश (18.4%) और तेजस्वी (36.9%) से तो कम है, लेकिन प्रशांत किशोर (16.4%) से ज्यादा है। ऐसे में माना जा रहा है कि चिराग खुद को मुख्यमंत्री पद की दौड़ में शामिल मानते हैं और भविष्य की जमीन तैयार कर रहे हैं। चिराग की यह रणनीति एनडीए को मजबूती दे सकती है, लेकिन जेडीयू को असहज करके गठबंधन के अंदर तनाव भी पैदा कर सकती है। तेजस्वी पर लगातार हमले महागठबंधन के वोट बैंक में सेंध लगाने का प्रयास माने जा रहे हैं। हालांकि अगर चिराग का यह दांव उल्टा पड़ा, तो एनडीए के भीतर फूट की स्थिति बन सकती है जैसा 2020 में हुआ था।