PATNA : बिहार की राजनीति इस समय एक नए मोड़ पर है, जहां हर तरफ सिर्फ एक ही नाम गूंज रहा है प्रशांत किशोर। चुनावी रणनीतिकार से नेता बने पीके की पार्टी जन सुराज ने बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले राजनीतिक हलचलें तेज कर दी हैं। पूरे राज्य में पीके की जनसभाओं में उमड़ रही भीड़ और उनके तीखे राजनीतिक दावे इस बात के संकेत हैं कि वे इस बार सिर्फ रणनीति नहीं, सत्ता की सीधी लड़ाई लड़ने आए हैं।
प्रशांत किशोर ने स्पष्ट कर दिया है कि उनकी पार्टी सभी 243 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी। उनके अनुसार बिहार के 60% से अधिक लोग नई राजनीतिक व्यवस्था की तलाश में हैं एक ऐसी व्यवस्था जो शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और विकास जैसे मुद्दों पर केंद्रित हो। पीके का BRDK फॉर्मूला ब्राह्मण, राजपूत, दलित और कुर्मी समुदाय को जोड़ने की रणनीति, राज्य के जातीय समीकरणों में सेंध लगा सकती है।
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो पीके की पार्टी को इस चुनाव में 10 से 30 सीटें मिल सकती हैं। खासतौर पर वे सीटें जहां युवा, पढ़े-लिखे और बेरोजगारी से परेशान मतदाता पारंपरिक दलों से असंतुष्ट हैं। बिहार में औसतन जीत का अंतर 16,825 वोटों का रहा है। ऐसे में यदि जन सुराज इन मार्जिन वाली सीटों पर असर डालती है, तो यह NDA और महागठबंधन दोनों के लिए खतरे की घंटी साबित हो सकती है।
साल 2006 में झारखंड में मधु कोड़ा ने निर्दलीय विधायक होते हुए भी मुख्यमंत्री की कुर्सी तक का सफर तय किया था। क्या पीके भी बिहार में ऐसा कुछ कर सकते हैं? विशेषज्ञों का मानना है कि यदि एनडीए या महागठबंधन बहुमत से चूकते हैं, तो जन सुराज किंगमेकर की भूमिका निभा सकती है। हालांकि पीके बार-बार गठबंधन से दूरी बनाते रहे हैं, लेकिन हरियाणा के दुष्यंत चौटाला की तरह सत्ता में साझेदारी की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।
पीके ने दावा किया है कि नीतीश कुमार की जेडीयू इस बार 25 सीटों से नीचे सिमट जाएगी और वे नवंबर 2025 के बाद मुख्यमंत्री नहीं रहेंगे। हालांकि यह कहना अभी जल्दबाज़ी होगा कि बीजेपी या आरजेडी जैसे बड़े दल उन्हें मुख्यमंत्री पद की पेशकश करेंगे। हां, डिप्टी सीएम जैसे विकल्प खुले रह सकते हैं, लेकिन पीके की महत्वाकांक्षा और अब तक का रूख यह संकेत देता है कि वे मुख्यमंत्री पद से कम पर संतुष्ट नहीं होंगे।