अमित शाह का बयान: “2026 में तुष्टिकरण नहीं, देशभक्तों की सरकार बनेगी” – पश्चिम बंगाल में बीजेपी की नई हुंकार

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कोलकाता: केंद्रीय गृह मंत्री और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के वरिष्ठ नेता अमित शाह ने रविवार को कोलकाता में एक बड़ी रैली को संबोधित करते हुए 2026 विधानसभा चुनावों को लेकर तीखा राजनीतिक संदेश दिया। शाह ने मंच से साफ शब्दों में कहा “पश्चिम बंगाल में इस बार तुष्टिकरण करने वालों की नहीं, देशभक्तों की सरकार बनेगी।”

क्या है इस बयान का राजनीतिक अर्थ?

यह बयान न केवल तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) पर सीधा हमला है, बल्कि बीजेपी की आगामी चुनावी रणनीति का स्पष्ट संकेत भी देता है। अमित शाह ने बंगाली भाषा में दिए इस भाषण में “तुष्टिकरण की राजनीति” के खिलाफ माहौल बनाने की कोशिश की।

बीजेपी का आरोप रहा है कि ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली टीएमसी सरकार अल्पसंख्यक समुदायों, खासकर मुस्लिम मतदाताओं, को खुश करने के लिए “धर्म आधारित भेदभाव” करती रही है।

पिछले चुनावों की झलक
2021 विधानसभा चुनाव:

बीजेपी: 77 सीटें (294 में से)

टीएमसी: 213 सीटें (वापसी के साथ सत्ता में)

2024 लोकसभा चुनाव:

बीजेपी: 38.73% वोट शेयर, 12 सीटें (42 में से)

टीएमसी: 29 सीटें

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बीजेपी 2024 में बढ़े हुए वोट शेयर को विधानसभा में सीटों में बदलने की कोशिश कर रही है।

बीजेपी की रणनीति: ‘CAA-NRC’ और हिंदू वोट बैंक
अमित शाह का बयान संकेत देता है कि 2026 में भी बीजेपी नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA), राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC), और हिंदू पहचान जैसे मुद्दों को जोर-शोर से उठाएगी। पार्टी “तुष्टिकरण बनाम राष्ट्रभक्ति” की थीम पर ध्रुवीकरण की रणनीति अपनाना चाहती है।

टीएमसी की प्रतिक्रिया और रणनीति

टीएमसी, ममता बनर्जी के नेतृत्व में, अल्पसंख्यक और गरीब वोटर्स पर अपना फोकस बनाए हुए है। पार्टी इसे ध्रुवीकरण की राजनीति करार देती रही है और शाह के बयान को राज्य के सामाजिक ताने-बाने को तोड़ने वाला बता सकती है।

राजनीतिक असर: क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

राजनीतिक टिप्पणीकारों के अनुसार: “बीजेपी राज्य में 2021 के मुकाबले कहीं ज़्यादा तैयार नज़र आ रही है, लेकिन टीएमसी की पकड़ अब भी मजबूत है। ऐसे में धार्मिक मुद्दों पर फोकस कर ध्रुवीकरण की राजनीति दोनों दलों के लिए चुनावी दांव-पेंच बन सकती है।”

आगे क्या?

बीजेपी तेज़ी से बंगाल में जमीन स्तर पर संगठन मजबूत कर रही है।

CAA लागू करने की प्रक्रिया फिर से तेज़ हो सकती है।

टीएमसी कल्याणकारी योजनाओं और सांप्रदायिक सौहार्द्र की बात करेगी।

2026 के चुनावों में यह देखना दिलचस्प होगा कि जनता “तुष्टिकरण” के मुद्दे पर क्या फैसला सुनाती है या कल्याणकारी योजनाओं को प्राथमिकता देती है।

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