DELHI : बिहार में चल रहे (SIR) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है, कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि अब वोटर लिस्ट में नाम जोड़ने के लिए ऑनलाइन आवेदन भी किया जा सकता है, जिससे आम मतदाताओं को बड़ी राहत मिलेगी। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि फॉर्म-6 के साथ ड्राइविंग लाइसेंस, बैंक पासबुक, पानी या बिजली का बिल जैसे दस्तावेज़ पहचान और पते के प्रमाण के रूप में मान्य होंगे। यह आदेश खासतौर पर उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण है, जिनका नाम ड्राफ्ट मतदाता सूची में नहीं जुड़ पाया है।
सुनवाई के दौरान केंद्रीय चुनाव आयोग (ECI) ने सुप्रीम कोर्ट को जानकारी दी कि बिहार में 12 मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों द्वारा अब तक 1,60,813 बूथ लेवल एजेंट (BLA) नियुक्त किए जा चुके हैं। इसके बावजूद केवल 2 आपत्तियां दर्ज हुई हैं, जिसे कोर्ट ने गंभीरता से लिया। चुनाव आयोग ने कहा कि अधिकांश राजनीतिक दल इस प्रक्रिया में सक्रिय सहयोग नहीं कर रहे, जिसके चलते नामों की पुष्टि और आपत्तियों के निस्तारण में बाधा आ रही है।
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि हर मतदाता को यह अधिकार है कि वह अपना नाम जोड़ सके या गलत नामों पर आपत्ति दर्ज कर सके, राजनीतिक दलों को चाहिए कि वे अपने बीएलए को सक्रिय करें और उन्हें इस प्रक्रिया में पूरी तरह से शामिल करें। कोर्ट ने 12 राजनीतिक दलों को निर्देश दिया है कि वे अपने बीएलए को आपत्तियाँ दर्ज कराने और मतदाता सूची की जांच में सक्रिय भूमिका निभाने के निर्देश दें।
इससे पहले ECI ने कोर्ट में हलफनामा दाखिल करते हुए बताया कि सुप्रीम कोर्ट के 14 अगस्त के आदेश का पालन करते हुए 20 अगस्त को उन 65 लाख मतदाताओं की सूची प्रकाशित कर दी गई है, जिनके नाम प्रारंभिक सूची से हटाए गए हैं। यह सूची बिहार के 38 जिला निर्वाचन अधिकारियों की वेबसाइटों पर सार्वजनिक कर दी गई है। हटाए गए नामों के पीछे के कारणों में मृत्यु, निवास स्थान परिवर्तन और डुप्लिकेट एंट्री शामिल हैं।
सुनवाई के दौरान यह भी बताया गया कि यदि सभी बीएलए सक्रिय हो जाएं, तो वे रोज़ाना 16 लाख नामों की जांच करने में सक्षम हैं। ऐसे में 65 लाख नामों की जांच 4 से 5 दिनों में पूरी हो सकती है। अभी आपत्ति दर्ज करने के लिए 10 दिन का समय शेष है और अब तक 84,305 दावे और आपत्तियाँ सीधे मतदाताओं से प्राप्त हो चुकी हैं।