DESK : कहते हैं कि अगर किसी चीज़ से भावनाएं जुड़ जाएं, तो वो सिर्फ सामान नहीं रहती, विरासत बन जाती है, रांची के रहने वाले प्रभात कुमार के पास भी ऐसी ही एक धरोहर है। एक लालटेन जो सिर्फ रोशनी नहीं देती बल्कि उनके परिवार की तीन पीढ़ियों की कहानियों की साक्षी भी है, ये लालटेन कोई आम लालटेन नहीं बल्कि करीब 90 साल पुरानी ‘अलाउद्दीन लालटेन’ है जिसकी 70 वॉट की रोशनी आज भी पूरे आंगन को जगमगा देती है।
लालटेन जो बनी सफलता की नींव
प्रभात कुमार बताते हैं कि यह लालटेन उनके पिता की अंतिम निशानी है और वे इसे बड़े ही जतन और सहेज कर रखते हैं। हम सब भाई-बहन इसी लालटेन की रोशनी में बैठकर पढ़ाई करते थे, तीन-चार घंटे तक एक साथ पढ़ना, यही हमारी दिनचर्या थी। प्रभात कुमार कोल इंडिया में इंजीनियर से लेकर मैनेजिंग डायरेक्टर तक का सफर तय कर चुके हैं, उनके बाकी भाई-बहन भी डॉक्टर और इंजीनियर बने।
40 साल पहले जब नहीं थी बिजली, लालटेन ही था सहारा
आज भले ही हर घर में LED और स्मार्ट लाइट्स हों, लेकिन एक समय था जब बिजली की व्यवस्था भी हर जगह नहीं थी। ऐसे समय में ये लालटेन पूरे घर को रोशन करती थी। प्रभात कुमार बताते हैं कि 40 साल पहले जब गांव में बिजली नहीं थी, तब ये लालटेन सबसे बड़ी जरूरत थी। जैसे ही इसे जलाया जाता, पूरा कमरा रोशनी से भर जाता था।
बच्चों ने भी इसी लालटेन से की पढ़ाई, आज बेटा है एयरफोर्स पायलट
यह लालटेन सिर्फ प्रभात कुमार की पीढ़ी तक सीमित नहीं रही, उनके बच्चे भी इसकी रोशनी में पढ़ाई करते हुए बड़े हुए। उनका बेटा आज भारतीय वायुसेना में पायलट है, ऐसे में इस लालटेन से जुड़ी भावनाएं और यादें परिवार के हर सदस्य के दिल में बसी हुई हैं। प्रभात कुमार कहते हैं आजकल के बच्चे चीजों को संभाल कर नहीं रख पाते, लेकिन पहले की चीजें बेहद मजबूत और टिकाऊ होती थीं। ऐसी वस्तुएं केवल उपयोग के लिए नहीं होतीं बल्कि उन्हें सहेजना चाहिए क्योंकि उनमें हमारी पहचान, इतिहास और संस्कार बसते हैं।