RANCHI : झारखंड की राजनीति में यदि कोई एक नाम जनआंदोलनों, सामाजिक चेतना और क्षेत्रीय अस्मिता का पर्याय बन चुका है तो वह है शिबू सोरेन। एक ऐसा नाम जिसने आदिवासी समाज की पीड़ा को न केवल आवाज़ दी, बल्कि उसे एक संगठित आंदोलन में बदला। झारखंड को अलग राज्य का दर्जा दिलाने से लेकर जन-जीवन से जुड़े संघर्षों तक, शिबू सोरेन का जीवनवृत्त भारतीय राजनीति में एक मिसाल बन गया है।
11 जनवरी 1944 को गोड्डा जिले के नेमरा गांव में जन्मे शिबू सोरेन के भीतर मानवीय संवेदनाएं बचपन से ही गहराई से समाहित थीं। एक चिड़िया की मृत्यु से व्यथित होकर उन्होंने जीवन भर के लिए मांसाहार छोड़ दिया। यह छोटी सी घटना उनके भीतर मानवीय करुणा और सामाजिक न्याय की भावना को जन्म देने वाली साबित हुई।
किशोरावस्था में जब उनके पिता सोबरन सोरेन की सूदखोरों द्वारा हत्या हुई, तो यह घटना उनके जीवन की दिशा बदल गई। इस हादसे ने उन्हें न्याय और अधिकारों की लड़ाई के लिए तैयार कर दिया। पढ़ाई से मन हटकर सामाजिक संघर्ष की ओर मुड़ा और उन्होंने हजारीबाग जाकर यथार्थ के साथ सीधा सामना करना शुरू किया।
रेलवे लाइन निर्माण में कुली से लेकर ठेकेदारी और मज़दूरी तक, शिबू सोरेन ने ज़िंदगी के हर रंग को जिया। ये अनुभव उनके भीतर जन-समस्याओं की समझ और नेतृत्व की ताकत पैदा करने वाले बने। उनका नेतृत्व जमीनी रहा बिल्कुल उस मिट्टी से जुड़ा, जिसकी पीड़ा को वे भीतर तक महसूस करते थे।
4 फरवरी 1972 को बिनोद बिहारी महतो के साथ मिलकर झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की नींव रखी गई। महतो अध्यक्ष बने और शिबू सोरेन महासचिव। यह संगठन जल्द ही झारखंड की आवाज़ और आदिवासी अधिकारों का सबसे प्रभावशाली मंच बन गया। 1980 में जब उन्होंने पहली बार दुमका से लोकसभा चुनाव लड़ने का फैसला लिया, तो पार्टी के पास संसाधनों की भारी कमी थी। तब शुरू हुआ ‘दिशोम दाड़ी’ आंदोलन हर घर से 250 ग्राम चावल और तीन रुपये का चंदा एकत्र कर चुनावी खर्च जुटाया गया। यह सिर्फ एक चुनावी अभियान नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक भागीदारी का प्रतीक बन गया।
लोकसभा से मुख्यमंत्री पद तक का सफर
- 1983 में पहली बार लोकसभा पहुंचे और इसके बाद आठ बार संसद सदस्य चुने गए।
- केंद्र सरकार में कोयला मंत्री जैसे अहम पद की जिम्मेदारी संभाली।
- तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने 2005, 2008 और 2009 में। हालांकि, गठबंधन की जटिलताओं के चलते कार्यकाल सीमित रहे।
शशिनाथ हत्याकांड में जेल जाना पड़ा, लेकिन अंततः वे निर्दोष साबित हुए और अदालत से बरी हो गए। आज झारखंड की सत्ता उनके बेटे हेमंत सोरेन के हाथों में है, जो झामुमो के वर्तमान अध्यक्ष और राज्य के मुख्यमंत्री हैं। उन्होंने संगठन को राज्य की सबसे बड़ी राजनीतिक ताकत में बदल दिया है। पिता की विचारधारा और संघर्ष अब नई पीढ़ी के जरिए आगे बढ़ रहे हैं।