वाशिंगटन/नई दिल्ली: रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर पश्चिमी देशों की नाराजगी अब खुलकर सामने आने लगी है। नाटो के नवनियुक्त प्रमुख मार्क रूटे ने भारत, चीन और ब्राजील को स्पष्ट चेतावनी दी है कि यदि उन्होंने रूस से तेल और गैस की खरीद जारी रखी, तो उन्हें अमेरिका की ओर से कड़े आर्थिक प्रतिबंधों का सामना करना पड़ सकता है।
रूस से व्यापार पर लगेगा भारी दंड
रशिया न्यूज की रिपोर्ट के मुताबिक, नाटो प्रमुख ने अमेरिकी सीनेटरों के साथ एक बैठक में कहा कि यदि भारत, चीन या ब्राजील रूस के साथ व्यापार करते रहे और व्लादिमीर पुतिन शांति वार्ता के लिए गंभीर नहीं हुए, तो इन देशों पर 100 प्रतिशत तक सेकेंडरी सैंक्शंस लगाए जा सकते हैं। यह प्रतिबंध न केवल उनकी कंपनियों को वैश्विक आर्थिक तंत्र से अलग कर सकते हैं, बल्कि दीर्घकालीन आर्थिक नुकसान भी पहुंचा सकते हैं।
ट्रंप की धमकी के एक दिन बाद आया बयान
रूटे का यह बयान पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की धमकी के एक दिन बाद आया है। ट्रंप ने चेताया था कि यदि रूस 50 दिनों के भीतर शांति वार्ता नहीं करता, तो रूस से तेल खरीदने वाले देशों पर कठोर टैरिफ लगाए जाएंगे।
अमेरिका में नए विधेयक की तैयारी
अमेरिकी सीनेट में एक नए विधेयक पर काम चल रहा है, जिसमें रूस से व्यापार करने वाले देशों पर 500 प्रतिशत तक का आयात शुल्क लगाने का प्रस्ताव है। इसका उद्देश्य रूस को वैश्विक व्यापार व्यवस्था से अलग-थलग करना है।
भारत पर संभावित असर
भारत, जो रूस से रियायती दरों पर कच्चा तेल खरीदता रहा है, बार-बार यह स्पष्ट करता आया है कि उसकी ऊर्जा नीति राष्ट्रीय हितों पर आधारित है और वह किसी पक्ष की बजाय वैश्विक स्थिरता में विश्वास रखता है। हालांकि, नाटो प्रमुख की चेतावनी के बाद भारत पर अमेरिका द्वारा 20 प्रतिशत टैरिफ लगाए जाने की अटकलें तेज हो गई हैं।
भारत-अमेरिका के बीच व्यापार समझौते की चर्चा
ऐसे में, भारत और अमेरिका के बीच एक नया व्यापार समझौता जल्द सामने आ सकता है। जानकारों का मानना है कि अमेरिका भारत पर रणनीतिक दबाव बनाकर रूस से दूरी बनाने के लिए मजबूर कर सकता है।
चीन और ब्राजील की रणनीति
जहां चीन रूस के साथ दीर्घकालीन सामरिक सहयोग बनाए हुए है, वहीं ब्राजील भी कृषि क्षेत्र की जरूरतों को देखते हुए रूस से उर्वरक और ईंधन की खरीद जारी रखे हुए है।
मार्क रूटे का यह बयान बताता है कि पश्चिमी शक्तियां अब रूस पर दबाव बढ़ाने के लिए उसके व्यापारिक साझेदारों को भी टारगेट कर रही हैं। भारत के सामने अब चुनौती है कि वह कैसे अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं, रणनीतिक स्वतंत्रता और वैश्विक साझेदारियों के बीच संतुलन बनाए रखे।