बिहार का ये गांव है खास! हर साल दर्जनों छात्र करते हैं JEE क्रैक

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DESK : बिहार के गयाजी जिले के मानपुर प्रखंड स्थित पटवा टोली गांव ने पिछले 34 वर्षों में शिक्षा और सफलता की एक अनोखी मिसाल कायम की है। कभी वस्त्र उद्योग के लिए प्रसिद्ध इस गांव को अब देशभर में “आईआईटियन विलेज” के नाम से जाना जाता है। यहां हर साल दर्जनों छात्र जेईई जैसी कठिन परीक्षा पास कर IIT और NIT जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में दाखिला ले रहे हैं। वर्ष 2025 में भी इस गांव से 12 छात्रों ने IIT में सफलता प्राप्त कर गांव का नाम रोशन किया है।

1991 में शुरू हुई थी सफलता की यह यात्रा

पटवा टोली की यह गौरवशाली यात्रा वर्ष 1991 में शुरू हुई थी, जब गांव के पहले छात्र जितेंद्र प्रसाद ने IIT में चयन पाकर इतिहास रचा था। इसके बाद यहां छात्रों में इंजीनियर बनने का जुनून बढ़ता गया। शुरुआती वर्षों में छात्र घरों में पावरलूम की तेज आवाजों के बीच पढ़ाई करते थे, लेकिन अब गांव में संसाधनों की स्थिति काफी बेहतर हो चुकी है।

मैनचेस्टर ऑफ बिहार से आईआईटियन विलेज तक

एक समय था जब पटवा टोली को बिहार का मैनचेस्टर कहा जाता था। गांव में आज भी 10 हजार से अधिक पावरलूम और 300 से ज्यादा हैंडलूम सक्रिय हैं, जहां धोती, गमछा, साड़ी और बेडशीट जैसे वस्त्र बनते हैं। इस उद्योग के शोरगुल के बीच भी यहां के छात्र पढ़ाई में अपना फोकस बनाए रखते हैं। यही संघर्ष आज उनकी सफलता की कहानी बन चुका है।

सीनियर छात्रों से मिलती है मजबूत गाइडेंस

यहां के छात्रों की सफलता के पीछे एक बड़ी वजह गांव के पुराने IITians और NITians का योगदान भी है। ये छात्र जब छुट्टियों में गांव आते हैं तो अपने जूनियर साथियों को पढ़ाई में मार्गदर्शन देते हैं। कठिन सवालों का हल निकालते हैं और बच्चों को सही दिशा में तैयारी करने में मदद करते हैं।

वृक्ष-बी द चेंज संस्था बनी बदलाव की बुनियाद

पटवा टोली में स्थापित ‘वृक्ष-बी द चेंज’ नामक संस्था ने इंजीनियरिंग की तैयारी को एक नई दिशा दी है। यह संस्था बच्चों को निःशुल्क और शांतिपूर्ण माहौल में तैयारी की सुविधा देती है। यहां ई-लाइब्रेरी मॉडल के तहत छात्र खुद बैठकर पढ़ाई करते हैं। आवश्यकता पड़ने पर संस्थान से निकले सीनियर छात्र उन्हें व्यक्तिगत गाइडेंस भी देते हैं। इन दिनों गर्मी की छुट्टियों में NIT के छात्र रूपम कुमार और सूरज कुमार गांव लौटे हुए हैं। ये दोनों छात्र भी इसी संस्था के माध्यम से इंजीनियरिंग कॉलेज तक पहुंचे हैं और अब छुट्टियों में आकर अपने जूनियर्स को पढ़ा रहे हैं। इनके जैसे कई और छात्र भी हर साल छुट्टियों में बच्चों को मार्गदर्शन देने गांव लौटते हैं।

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