संपदा के बावजूद संघर्षरत: झारखंड की खनिज समृद्धि और विकास की द्वंद्व कथा
रांची। झारखंड, जिसे भारत का खनिज हृदयस्थल कहा जाता है, धरती के गर्भ में अनमोल खजाने समेटे बैठा है। कोयला, लौह अयस्क, तांबा, अभ्रक, यूरेनियम, बॉक्साइट, और चूना-पत्थर जैसी दर्जनों खनिज संपदाएं यहाँ पाई जाती हैं। पर सवाल यह उठता है — क्या झारखंड इन संसाधनों का उपयोग करके एक आदर्श, विकसित राज्य बन सका है?
खनिजों की अपार संपत्ति
झारखंड देश में खनिज उत्पादन में शीर्ष स्थान पर है। भारत के कुल खनिज भंडारों का लगभग 40% हिस्सा इसी राज्य में है। धनबाद को कोयला राजधानी जमशेदपुर को “इस्पात नगरी” कहा जाता है। रांची, बोकारो, हजारीबाग और चाईबासा जैसे जिले भी खनिज दोहन के केंद्र हैं।
पर क्या मिली असली तरक्की?
जहां एक ओर खनिज संसाधन राज्य को समृद्ध बना सकते थे, वहीं दूसरी ओर गरीबी, बेरोजगारी और पलायन आज भी यहां की हकीकत हैं। खनन क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाओं का अभाव, प्रदूषण और विस्थापन जैसी समस्याएं भी गंभीर चुनौती बनी हुई हैं।
विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि झारखंड अपनी खनिज संपदा का विवेकपूर्ण, पारदर्शी और टिकाऊ ढंग से दोहन करे, तो यह राज्य आत्मनिर्भरता, औद्योगिक विकास और रोजगार सृजन का उदाहरण बन सकता है।
युवाओं के लिए अपार संभावनाएं
खनिज आधारित उद्योगों में टेक्निकल स्किल, इंजीनियरिंग, पर्यावरण संरक्षण और अनुसंधान के क्षेत्र में युवाओं के लिए असीम अवसर हैं। आवश्यकता है तो बस एक मजबूत नीति और समाज के प्रत्येक वर्ग की भागीदारी की। झारखंड केवल खनिजों का भंडार नहीं, बल्कि संभावनाओं की धरती है। अब समय है कि यह राज्य अपने संसाधनों को पहचान कर उन्हें राज्यवासियों की समृद्धि में बदले।