RANCHI : झारखंड के कद्दावर नेता, आदिवासी समाज की दमदार आवाज और झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के संरक्षक शिबू सोरेन अब हमारे बीच नहीं रहे। सोमवार को उनका निधन हो गया। झारखंड को अलग राज्य का दर्जा दिलाने में उन्होंने निर्णायक भूमिका निभाई थी। कई बार सांसद और मुख्यमंत्री रहे शिबू सोरेन के निधन के बाद पूरा राज्य शोक में डूबा हुआ है।
इसी बीच उनका एक पुराना भाषण सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है। यह भाषण उन्होंने 1997 में लोकसभा में दिया था, जिसमें उन्होंने झारखंड के आदिवासियों की समस्याओं को बेबाकी से संसद में रखा था। भाषण की गूंज आज भी उतनी ही प्रासंगिक है, जितनी उस समय थी।
मैं जंगल से आया आदिवासी हूं..शिबू सोरेन का भावुक संबोधन
शुरुआत में खुद को जंगल इलाके से आने वाला आदिवासी बताते हुए शिबू सोरेन ने कहा था कि झारखंड की धरती कोयला, लोहा, सोना, चांदी, यूरेनियम जैसे खनिजों से भरी पड़ी है, लेकिन इन संसाधनों का लाभ कभी यहां के स्थानीय लोगों को नहीं मिला। उन्होंने संसद में कहा था हमारे गांव उजाड़ दिए गए, लोगों को खदेड़ दिया गया, जमीन छीन ली गई, लेकिन न रोजगार मिला न रहने के लिए घर। कोयले की खदानों में बार-बार हो रहे हादसों, बच्चों के फंसने की घटनाओं और सरकार की चुप्पी पर उन्होंने सवाल उठाए थे।
जंगल, जड़ी-बूटियां और मुनाफा…आदिवासियों को क्यों नहीं हिस्सा?
शिबू सोरेन ने जंगल और आदिवासी जीवन के संबंध पर भी गंभीर चिंता जताई थी, उन्होंने कहा था कि जंगल की जड़ी-बूटियों से दवा कंपनियां करोड़ों कमा रही हैं लेकिन जिनका जंगल है वे आदिवासी आज भी गरीबी और भुखमरी झेल रहे हैं। उन्होंने संसद में सवाल किया था जब जंगल हमारा है, मेहनत हमारी है, तो मुनाफा कुछ गिने-चुने अमीरों को क्यों?
झारखंड राज्य की मांग और शिक्षा पर जोर
अपने भाषण में सोरेन ने झारखंड को अलग राज्य बनाए जाने की पुरजोर मांग की थी। उनका मानना था कि एक बड़ा राज्य स्थानीय जरूरतों को समझने में नाकाम रहता है। उन्होंने कहा था जब तक झारखंड अलग राज्य नहीं बनेगा, तब तक यहां के आदिवासी, किसान और मजदूरों की समस्याएं नहीं सुलझेंगी। साथ ही उन्होंने यह भी कहा था कि आदिवासियों को जानबूझकर शिक्षा से दूर रखा गया, उन्होंने निशाना साधते हुए कहा था कि जब तक हर व्यक्ति को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा नहीं मिलेगी, तब तक समानता केवल एक सपना ही रहेगी।
आज भी वही समस्याएं, वही सवाल
सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे इस भाषण को सुनकर आज का हर शख्स यही कह रहा है इतने सालों बाद भी कुछ नहीं बदला। संसाधनों की लूट, जबरन विस्थापन, बेरोजगारी, शिक्षा की कमी और आदिवासी अधिकारों की अनदेखी ये तमाम मुद्दे आज भी झारखंड के कई हिस्सों में जस के तस हैं।